पंजाबी छात्रों में कनाडा जाने की चाह बढ़ती जा रही है। कनाडा जाकर पढ़ना और फिर वहीं की पी.आर. ले लेना तो अधिकांश पंजाबी छात्रों का सपना बन चुका है। पंजाबियों को उनके अच्छे सामाजिक मूल्यों के लिए जाना जाता है और यही कारण है कि विकसित देशों में पंजाबी कामगारों और छात्रों की हमेशा से मांग रही है। दूसरी तरफ अच्छे अवसर और बेहतर जीवन शैली के लिए पंजाबी भी विदेश जाना पसंद करते हैं।
न खरीद पा रहे राशन, न किराया दे पा रहे पंजाबी छात्र
जानकारों का कहना है कि इस समय हालात ये बन चुके हैं कि पंजाबी छात्रों को लेबर जॉब नहीं मिल पा रही है। जिन्हें हाथ में कुछ हुनर है, सिर्फ वे ही यहां पर थोड़ा-बहुत काम कर पा रहे हैं लेकिन हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। पंजाबी छात्रों के पास महीने का राशन तक खरीदने के पैसे नहीं हैं। यहां तक उन्हें किराया तक देना मुश्किल हो चुका है। कई छात्र तो अब पूरी तरह से गुरुद्वारों पर ही निर्भर हो चुके हैं। वो गुरुद्वारों में लंगर खाकर गुजारा करने के लिए मजबूर हो चुके हैं।
लाखों रुपए खर्च कर भी पंजाबी छात्रों का भविष्य हुआ अंधकारमय
कनाडा में रहने वाले कई छात्र बताते हैं कि उन्हें अब कोई काम नहीं मिल पा रहा है। अब कुछ न कमा पा रहा हैं और न बचत कर पा रहे हैं। वे नहीं जानते कि मुझे ऐसे हालात कब सुधरेंगे और अब उनका भविष्य अनिश्चित हो चुका है। हजारों छात्रों को काम नहीं मिल पा रहा है। हम शुल्क और करों का भुगतान करते हैं और बदले में हमें कुछ नहीं मिलता। कनाडा सरकार अब हमें नहीं पहचान रही, लेकिन हम उन्हें बताना चाहेंगे कि हम वे लोग हैं जिन्होंने आपकी ‘श्रम की कमी’ को हल करने सहायता की थी। हालांकि इसी नीति का दुरुपयोग कर पंजाबी छात्रों से बहुत कम मानदेय पर कहीं अधिक कार्य करवाया जा रहा है।
कनाडा सरकार ने आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए किया छात्रों का दुरुपयोग
छात्रों का कहना है कि कनाडा सरकार उनका दुरुपयोग श्रम के सस्ते स्रोत यानी ‘चीप लेबर’ के रूप में कर रही है और जब उनका उपयोग हो जाता है, तब वह उन्हें देश छोड़ने के लिए बाध्य कर देती है। दरअसल बीते साल कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने लगभग 50 हजार विदेशी छात्रों को स्नातक होने के पश्चात नौकरी ढूंढने के लिए 18 महीने तक रहने की अनुमति दी थी। यह वह समय था, जब कनाडा की सरकार कोरोना के मामले कम होने के पश्चात देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास कर रही थी। कनाडाई स्थानीय लोग बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, जबकि भारतीय छात्रों को प्रवेश स्तर की नौकरियों में रखा जा रहा है। उन्हें स्थानीय नागरिकों के ऊपर वरीयता दी जाती है, क्योंकि उन्हें स्थापित मानदेय से कहीं कम भुगतान किया जाता है, और उन्हें अधिक घंटों के लिए काम भी करवाया जाता है। हालांकि कुछ ही महीनों के पश्चात उनका वर्क वीसा समाप्त हो जाने पर उनके सामने न सिर्फ आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाती है, बल्कि उन्हें देश छोड़ने के लिए भी कह दिया जाता है।